शिरोमणी भक्त गुहा निषाद राज...

माता कैकेयी ने दशरथ के माध्यम से जब प्रभु राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास जाने हेतु आज्ञा दिलवायी तब भगवान राम ने लक्ष्मणजी तथा माता सीता के साथ वन गमन किया। तो वनवास के पड़ाव में गंगा के तट श्रृंगवेरपुर पहुंचते है। यहाँ पर निषाद राज का राज्य था। निषादराज को प्रभु रामचन्द्र के श्रृंगवेरपुर में गंगा के तट पर आने की जानकारी हुई तो वह अत्यंत अधीर हो गये तथ प्रेमातुर होकर प्रभु की बहुत सेवा की उन्होने श्री और रामचन्द्रजी माता सीता तथा भैय्या लक्ष्मण के साथ अपने नाव से गंगा पार कराया। रामचरित मानस तथा वाल्मिकी रामायण में यह प्रसंग बहुत ही मार्मिकता तथा अत्यंत आदर से वर्णित किया गया है। निषाद राज की प्रभु भक्ति का अत्यंत ही सरस एवं सुंदर प्रसंग है।
निषाद राज के बारे में कहा जाता है कि निषाद राज का श्रृंगवेरपुर से गहरा संबंध था। यह गंगा के किनारे बसा ऋषि मुनियों का तपोभूमि था। कथा के अनुसार राम के जन्म के पूर्व जब आसुरी शक्तियाँ अपने चरम पर पहुँच गयी तब राजा-महाराजा एवं ऋषि मुनि सभी भयभीत एवं पूछा तो आतंकित रहने लगे। ऐसे में राजा दशरथ ने अपने कुलगुरु ऋषि वशिष्ट से जब इस बारे में पूछा तो उन्होने कहा कि श्रृंगवेरपुर के श्रृंगी ऋषि ही इस समस्या से निजात दिला सकते है। श्रृंगी ऋषि त्रेतायुग में एक बडे तपस्वी थे जिनकी ख्याति दूर-दूर तक थी। राजा दशरथ के अभी तक कोई पुत्र नही था केवल एक पुत्री थी जिसका नाम शांता था। दशरथ के मन में यहां आसुरी शक्तियों से छुटकारा पाने की चिंता सता रही थी तो दूसरी ओर उसे अपने वंश चलाने हेतु पुत्र नही होने की पीडा थी, ऐसे दशरथ को इस समस्या के निवारण के लिए श्रृंगी ऋषि की मदद लेने की सलाह दी तब राजा दशरथ के प्रार्थना पर ऋषि श्रृंगी उसके दरबार पहुंचे। तथा उन्होने पुद्ध कामेष्ठी यज्ञ करने की सलाह दिया। अतः राजा दशरथ ने उपरोक्त यज्ञ को पूरे विधि विधान से 12 दिनों में सम्पन्न कराया, यज्ञ को सम्पन्न करने में ऋषि श्रृंगी ने अपने अव्दितीय विव्दता का परिचय दिया था इससे प्रभावित होकर राजा दशरथ ने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि श्रृंगी से करने का निर्णय लिया, इस निर्णय से सभी सहमत थे अतः शांता का विवाह श्रृंगी से हो गया। माना जाता है कि श्रृंगवेरपुर धाम के मंदिर में श्रृंगी ऋषि और देवी शांता निवास करते है। यही पास में रामसीता जी का पहला पडाव था जिसे रामचौरा घाट के नाम से जाना जाता है। त्रेता युग में यह स्थान निषादराज की राजधानी थी वह मछुवारों और नाविकों के राजा थे। यहीं पर भगवान राम ने निषाद राज से गंगा पार कराने के लिए निषाद राज से निवेदन किया था।
निषादराज अपने पूर्वजन्म में कछुआ हुआ करता था। एक बार की बात है उसने मोक्ष के लिये शेष शैय्या पर शयन कर रहे भगवान विष्णु के अंगुठे का स्पर्श करने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नही हुए उसके बाद एक युग से ज्यादा वक्त तक भगवान की तपस्या की और अंत में त्रेता युग में निषाद के रूप में विष्णु के अवतान भगवान राम के हाथो मोक्ष पाने का प्रसंग बना। वनवास के समय रामजी की सेवा करने और उन्हे गंगा पार करवाने का जो पुण्य मिला वह इसी प्रसंग का हिस्सा कहा जाता है। भक्तराज निषाद राज का महल आज भी श्रृंगवेरपुर में मौजूद है। जो रामभक्ति की पवित्र स्थान है।

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