रानी रासमणी...

रानी रासमणी धीवर? जी हां, आपने इतिहास के इस महान नायिका का नाम भी नहीं सुना होगा। इतिहास के पन्नों में दफन रानी रासमनी माता धीवर कुल की थी। इनकी महान उपलब्धियों का इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया। धीवर समाज के गौरवशाली इतिहास को पुनः उद्धृत किया जा रहा है।M
दक्षिणेश्वर काली माँ के पुजारी स्वामी श्री रामकृष्ण परमहस, (जो कि स्वामी विवेकानंद जी के गुरु थे) से संबंधित पुस्तक श्री रामकृष्ण लीलामृत में वर्णित है, रानी रासमणी का चरित्र कथा। इसके अलावा बांग्ला भाषा सहित हिन्दी और अंग्रेजी में फिल्में भी बन चुकी है। कलकत्ता में विभिन्न सड़को, चौक चौराहों, घाटों का नाम भी इनके नाम रखा गया है। 1993 में भारतीय डाक विभाग ने रानी माँ के जन्म द्विशताब्दि वर्ष पर एक विशेष डाक टिकिट जारी किया गया था। वे अत्यंत विनम्र स्वभाव की, मृदुभाषी थी, इसलिए लोगो ने उन्हें ममतामयी माँ, रानी माँ तथा करुणामयी के नाम से विभुषित किया था।

विभिन्न उपलब्धियाँ :-
1. वर्ष 1847 में दक्षिणेश्वर काली माई का भव्य मंदिर निर्माण कराया, जिसके पहले पुजारी रामकुमार चट्टोपाध्याय नियुक्त हुए, तत्पश्चात स्वामी रामकृष्ण परमहंस पुजारी बने जिनके शिष्य स्वामी विवेकानंद जी थे।
2. अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता में दुर्गा पूजा यात्रा बंद कराने की साजिश को असफल किया।
3. कलकत्ता में गंगा नदी पर बाबूघाट, अहेरी टोला एवं नीमतला घाट बनवाई।
4. हावड़ा में गंगा नही पर पुल (हावड़ा ब्रिज बना) बनवाकर कलकत्ता शहर को बसाकर विस्तार किया।
5. कलकत्ता के क्रिकेट स्टेडियम (वर्तमान ईडन गार्डन) बनाने के लिए भूमि दान किया।
6. मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभुमि स्थल की दीवार बनवाई।
7. श्रीनगर में शंकराचार्य जी की मंदिर का जीर्वोद्धार करवाया।
8. श्री रामेश्वरम् से श्रीलंका के मंदिरों तक जाने के लिए नौका सेवा प्रारंभ करायी।
9. सुवर्णरेखा नदी से जगन्नाथ पुरी तक सड़क बनवायी ।
10. 1840 में अंग्रेजी को मछुआरों से टैक्स वसूलने से रोका।
11. कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और नेशनल लाईब्रेरी के लिए धन दान दिया।
12. ढाका में मुस्लिम नवाब से 2000 हिन्दुओं को स्वतंत्र करवाया।

जीवन परिचय :- रानी रासमणी का जन्म 28 सितम्बर 1973 को उत्तर चौबीस परगना जिला के हॉली शहर के कोना गांव में कृषक परिवार में हुआ था। मात्र 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह कलकत्ता के जान बाजार के धनी जमीदार बाबू रामचंद्र दास के साथ करवा दिया गया। पति की मृत्योपरांत जमीदारी का सारा भार अपने उपर उठा लिया तथा बड़ी कुशलता के साथ अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वहन किया। रानी रासमनी किसी साधारण बंगला हिन्दु विधवा के समान सादगी एवं सरलतापूर्वक जीवन-यापन किया करती थी। उन्होनें बहुत से सामाजिक एवं लोक कल्याणकारी कार्य किए जिनके कारण उन्हें लोग माता कहने लगे ।
रानीजी के सम्मान में कोलकाता में कई स्थानों पर उनकी मूर्तियाँ स्थापित की गई है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के मुख्य प्रांगण में प्रवेश द्वारा पर रानी रासमणी मंदिर स्थापित है। कर्जन पार्क में भारत के महानतम व्यक्तित्वों के बीच रानीजी की प्रतिमा स्थित है। इसके अतिरिक्त कलकत्ता के विभिन्न चौक-चौराहों, मुख्य मार्गो, घाटों का नाम रानीजी के नाम पर है। हम समस्त मछुआरा (धीवर) जाति के लिए बेहद गर्व की बात है कि हमारे जाति कुल में इतनी बड़ी हस्ती रही है। धीवर समाज के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान समाज के प्रत्येक जन को होना चाहिये। हम सबको इसकी गरिमा को आगे बढ़ाने हेतु सतत् प्रयास करना चाहिये। अतीत के सम्मान से सुनहरे भविष्य का निर्माण होता है

सूचना

 
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